बिपिन चन्द्र पाल

Bidhaan Chandra Ray, Bipin Chandra Pal, Chakravarti Rajgopalachari, Ganesh Shankar Vidyarthi, Guljari Laal Nanda, Hakim Azmal Khan, Jawahar Lal Nehru, Kamla Devi Chattopadhay, Kamla Nehru, Loknayak Jayprakash Narayan, Praful Chandra Rai, Rajendra Prasad,Ram Manohar Lohia
Bidhaan Chandra Ray, Bipin Chandra Pal, Chakravarti Rajgopalachari, Ganesh Shankar Vidyarthi, Guljari Laal Nanda, Hakim Azmal Khan, Jawahar Lal Nehru, Kamla Devi Chattopadhay, Kamla Nehru, Loknayak Jayprakash Narayan, Praful Chandra Rai, Rajendra Prasad,Ram Manohar Lohia

जन्म: 7 नवंबर, 1858, हबीबगंज ज़िला, (वर्तमान बांग्लादेश)

मृत्यु: 20 मई, 1932, कोलकाता, पश्चिम बंगाल

कार्य क्षेत्र: स्वतन्त्रता सेनानी, शिक्षक, पत्रकार, लेखक

बिपिन चंद्र पाल एक भारतीय क्रांतिकारी, शिक्षक, पत्रकार व लेखक थे। पाल उन महान विभूतियों में शामिल हैं जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की बुनियाद तैयार करने में प्रमुख भूमिका निभाई। वे मशहूर लाल-बाल-पाल (लाला लाजपत राय, बालगंगाधर तिलक एवं विपिनचन्द्र पाल) तिकड़ी का हिस्सा थे। इस तिकड़ी ने अपने तीखे प्रहार से अंग्रेजी हुकुमत की चूलें हिला दी थी। विपिनचंद्र पाल राष्ट्रवादी नेता होने के साथ-साथ एक शिक्षक, पत्रकार, लेखक व बेहतरीन वक्ता भी थे। उन्हें भारत में क्रांतिकारी विचारों का जनक भी माना जाता है।

उन्होंने 1905 के बंगाल विभाजन के विरोध में अंग्रेजी शासन के खिलाफ आंदोलन बड़ा योगदान दिया जिसे बड़े पैमाने पर जनता का समर्थन मिला। लाल-बाल-पाल की इस तिकड़ी ने महसूस किया कि विदेशी उत्पादों से देश की अर्थव्यवस्था बिगड़ रही है और लोगों का काम भी छिन रहा है। अपने गरम विचारों के लिए मशहूर पाल ने स्वदेशी आन्दोलन को बढ़ावा दिया और ब्रिटेन में तैयार उत्पादों का बहिष्कार, मैनचेस्टर की मिलों में बने कपड़ों से परहेज तथा औद्योगिक तथा व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में हड़ताल आदि हथिआरों से ब्रिटिश हुकुमत की नीद उड़ा दी।

राष्ट्रीय आंदोलन के शुरूआती सालों में गरम दल की महत्वपूर्ण भूमिका रही क्योंकि इससे आंदोलन को एक नई दिशा मिली और इससे लोगों के बीच जागरुकता बढ़ी। बिपिन चन्द्र पाल ने राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान आम जनता में जागरुकता पैदा करने में अहम भूमिका निभाई। उनका मानना था कि नरम दल के हथियार प्रेयर-पीटिशन से स्वराज नहीं मिलने वाला है बल्कि स्वराज के लिए विदेशी हुकुमत पर करारा प्रहार करना पड़ेगा। इसी कारण उन्हें स्वाधीनता आन्दोलन में क्रांतिकारी विचारों का पिता कहा जाता है।

प्रारंभिक जीवन

विपिनचंद्र पाल का जन्म 7 नवंबर 1858 को अविभाजित भारत के हबीबगंज जिले में (अब बांग्लादेश में) पोइल नामक गाँव में एक संपन्न घर में हुआ था। उनके पिता रामचंद्र पाल एक पारसी विद्वान और छोटे ज़मींदार थे।

उन्होंने चर्च मिशन सोसाइटी कॉलेज (अब सेंट पौल्स कैथेड्रल मिशन कॉलेज) में अध्ययन किया और बाद में पढ़ाया भी। यह कॉलेज कलकत्ता यूनिवर्सिटी से सम्बद्ध था।

बहुत छोटी आयु में ही बिपिन ब्रह्म समाज में शामिल हो गए थे और समाज के अन्य सदस्यों की भांति वे भी सामाजिक बुराइयों और रुढ़िवादी परंपराओं का विरोध करने लगे। उन्होंने बड़ी छोटी उम्र में ही जाति के आधार पर होने वाले भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाया और अपने से ऊंची जाति वाली विधवा से विवाह किया, जिसके पश्चात उन्हें अपने परिवार से नाता तोड़ना पड़ा। पाल धुन के पक्के थे इसलिए पारिवारिक और सामाजिक दबाओं के बावजूद कोई समझौता नहीं किया।

कांग्रेस पार्टी और स्वतंत्रता आन्दोलन में उनकी भूमिका

सन 1886 में वे कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए। सन 1887 में कांग्रेस के मद्रास सत्र में उन्होंने अंग्रेजी सरकार द्वारा लागू किये गए शस्त्र अधिनियम तत्काल हटाने की मांग की क्योंकि यह अधिनियम भेदभावपूर्ण था। वे मशहूर लाल-बाल-पाल (लाला लाजपत राय, बालगंगाधर तिलक एवं विपिनचन्द्र पाल) तिकड़ी का हिस्सा थे। इन तीनों ने क्रांतिकारी भावनाओं को हवा दी और खुद भी क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लिया। पाल और अरविंदो घोष ने एक ऐसे राष्ट्रवाद का प्रवर्तन किया जिसके आदर्श थे पूर्ण स्वराज, स्वदेशी, विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार और राष्ट्रीय शिक्षा।

बिपिन चन्द्र पाल ने स्वदेशी, विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार और राष्ट्रीय शिक्षा जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से राष्ट्रिय आन्दोलन को आगे बढ़ाया। उनका मानना था कि ऐसा करने से गरीबी और बेरोज़गारी दूर होगी।

अंग्रेजी हुकुमत में उनको बिलकुल भी विश्वास नहीं था और उनका मानना था कि विनती और असहयोग जैसे हथियारों से विदेशी ताकत को पराजित नहीं किया जा सकता। इसी कारण गाँधी जी के साथ उनका वैचारिक मतभेद था। अपने जीवन के अंतिम कुछ सालों में वे कांग्रेस से अलग हो गए।

पाल ने क्रांतिकारी पत्रिका बन्दे मातरम की स्थापना भी की थी। तिलक की गरफ्तारी और स्वदेशी आन्दोलन के बाद अंग्रेजों की दमनकारी निति के बाद वे इंग्लैंड चले गए। वहाँ जाकर वे क्रान्तिकारी विधार धारा वाले इंडिया हाउस (जिसकी स्थापना श्यामजी कृष्ण वर्मा ने की थी) से जुड़ गए और स्वराज पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ किया। जब क्रांतिकारी मदन लाल ढींगरा ने सन 1909 में कर्ज़न वाइली की हत्या कर दी तब स्वराज का प्रकाशन बंद कर दिया गया और लंदन में उन्हें बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ा। इस घटना के बाद बिपिन चन्द्र पाल ने अपने आप को उग्र विचारधारा से अलग कर लिया।

वंदे मातरम् राजद्रोह मामले में उन्होंने अरबिन्दो घोष के ख़िलाफ़ गवाही देने से इंकार कर दिया जिसके कारण उन्हें 6 महीने की सजा हुई।

उन्होंने कई मौक़ों पर महात्मा गांधी जैसे नेताओं की आलोचना भी की और उनके विचारों का विरोध भी किया। सन 1921 में गांधीजी की आलोचना करते हुए उन्होंने कहा था, आप के विचार तार्किक नहीं बल्कि जादू पर आधारित हैं”।

रचनाएं और संपादन

क्रांतिकारी के साथ-साथ, बिपिन एक कुशल लेखक और संपादक भी थे। उन्होंने कई रचनाएँ भी की और कई पत्र-पत्रिकाओं का संपादन भी किया।

इंडियन नेस्नलिज्मनैस्नल्टी एंड एम्पायरस्वराज एंड द प्रेजेंट सिचुएशनद बेसिस ऑफ़ रिफार्मद सोल ऑफ़ इंडियाद न्यू स्पिरिटस्टडीज इन हिन्दुइस्मक्वीन विक्टोरिया – बायोग्राफीसम्पादन

उन्होंने लेखक और पत्रकार के रूप में बहुत समय तक कार्य किया।

परिदर्शक (1880)बंगाल पब्लिक ओपिनियन ( 1882)लाहौर ट्रिब्यून (1887)द न्यू इंडिया (1892)द इंडिपेंडेंट, इंडिया (1901)बन्देमातरम (1906, 1907)स्वराज (1908 -1911)द हिन्दू रिव्यु (1913)द डैमोक्रैट (1919, 1920)बंगाली (1924, 1925)निधन

20 मई 1932 को इस महान क्रन्तिकारी का कोलकाता में निधन हो गया। वे लगभग 1922 के आस-पास राजनीति से अलग हो गए थे और अपनी मृत्यु तक अलग ही रहे।

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